ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
कहना आज मैं जो चाहूँ जानूं न किन शब्दों में कहूं ,
कहा मुझे मेरे बाबा { पिता } ने , साल कई हो गए उसे .
"मीरा गर मौन धारण करोगी अंतर्मौनी अवश्य बनोगी "
कैसी यह सिक्षा दी जिसे समझना बड़ा ही मुश्किल था .
"कुछ भी नहीं मुश्किल मीरा मन अगर आप ठान लो "
किया वहि जो बाबा ने कहा ,आगई तब उनकी बात समझ .
मौनी बनी उस दिनसे मैं ,जाना शांन्ति बड़ी चुप रहने में है .
कई प्रश्नोंके अर्थ मिले खोज जिसे कई दिनों से थी मैं
जैसे बढती चली चुपकी मेरी वैसे बढ़ी प्रसन्नता भी .
शांन्ति कहो या प्रसन्नता ,यह तो स्थिति है जाग्रुतता .
आत्मा जागृत हुई जो मेरी एक निराला पंथ दिखाई दिया .
दो कदम चली मैं थी ,लगा साथ चल रहाई,
राह पत्थर आये कई ,पर ठोकर मुझे खाने न दी
कठिन मार्ग मौन का जो था पर अकेला मुझे न छोड़ा .
मौन का हुआ बड़ा असर ,शान्त मन को लक्ष आया नजर .
आत्मज्ञान मन डूब चला ,तब मैंने लिखना सोचा .
अब जब मैं लिखना चाहूँ ,कलम यह मेरी चल पड़े .
मर्झी गर यह तेरी { साईं बाबाकी } मर्झी है ,
आशीष मुझे देना है तुझे जरुरी .
लिखूं मैं अब जो भी लिखूं अल्फझ {शब्द }तेरे ही हों
आज लिखा है मौन पर ,कल न जानूं क्या लिखूं .
आपसे है यह कहना ,
मौन धारण जब करो पहले समय कम निश्चित करो ,
पठन इसका जब होता रहे ,फिर समयको बढाओ .
जल्द बाझी न करना धीरज से आगे बढना
मन बड़ा चंचल रहा है शान्त होने उसे समय देना.
पूर्नशान्त हुआ मन जब हो , विचारोंसे परे तब होगा.
इस शान्त अवस्था को ज्ञानी कहे जग्रुतता
मन जो निर्मल निश्चिन्त हुआ बने आप अब अंतर्मौनी
भेद भाव न रहे अभी ,राग द्वेष भी छूटे सभी .
चक्षु दीव्य खुल जाएँगे ,आत्मदर्शन अब पाओगे .
परम सत्य जो सुन्दर भी है जाना अब आपने
सुन्दरता ही सुन्दरता देखोगे सबमे .
इस राह जो चल पड़े हो ,भूलोगे समय को स्थानको .
अनंत में खोजाओगे ,शिव सुन्दर सत्य जो है
खुदही शिवम् बन जाओगे .
पर यह सब पाने को
मौन की पूर्व कुछ तैयारी भी है ,
जानना समझना जरुरी भी है .
न मैं कहूं कुछ न बोलो पर बोलो समय देखकर बोलो ,
जितना जरूरी हो उतना ही बोलो ,
सब्दों को चुन चुन कर बोलो , उन्हें भी माप तोलकर बोलो ,
याद रहे दो बार सोचकर बोलो.
ध्यान रहे वाणी आपके मधुर ही हो कर्कश न हो
गर जानो न क्या बोलना है ,
मानो मेरी ,चुप ही रह लो .
यह सब आप कर पाओगे ,मौन की महिमा समझ जाओगे
मौन ही है इक अनोखी भाषा ,
वख्त ऐसा भी आएगा ,बिना कहे सब कुछ कह पाओगे .
आपका शुभ जो चाहा है मैंने ,इसी लिए यह लिखा है मैंने .
जो भी लिखा सद्गुरु से सिखा
आप भी पाओ ,आत्मबोध जो मैंने पाया .
अरज बस है इतनी मेरी गर लिखने मई भूल हुई हो कोई ,
कृपया क्षमा मुझे अवश्य मुझे कर देना.
गर भाया हो लिखना मेरा मन ख़ुशी होगी बता जरुर देना.
मांगू आशीष आपसे सदा ही ऐसे लिखती रहूँ जब तक मैं जियूं .
याचूं मेरे बाबा से हरदिन
मन वचन कर्म से सत्य पंथ ही चलूँ ,आत्मा बल दृढ बना रहे मेरा.
भक्ति से तेरी मन विचल कभी न हो मेरा , जगह अपने चरण कमल मैं मुझे देना .
मीरा
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदम पूर्नात्पूर्न्मुद्च्याते
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते .
ॐ शांन्ति शांन्ति शंन्तिही .
mirajnikant.